देवरिया की कविता 03

देवरिया की कविता
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देवरिया जनपद का काव्य साहित्य,  लोक साहित्य,गद्य साहित्य और  सांस्कृतिक
विरासत अत्यंत समृद्ध रही है । श्री मोती बीए,श्याम जी,अनुरागी जी, विचित्र जी,सिंहासन तिवारी कान्त, स्व धरीक्षण मिश्र,बाल कृष्ण पान्डेय जैसे तेजस्वी कवियों ने इस जनपद की मिट्टी की सुगंध पूरी दुनिया में फैलाया है और  कविता की एक सुपुष्ट परंपरा अपने पीछे छोड गये हैं जिसको समकालीन हिन्दी भोजपुरी  के कवि  लहलहा रहे हैं।मेरा प्रयास इस परंपरा की  बिखरी कड़ियों को जोड़कर साहित्य जगत से उन्हेँ परिचित कराने का है, देखिये कितनी सफलता मिल पाती है। आप इस परंपरा के  सुधी कवि  हैं, इस कड़ी  में कुछ और नाम  और उनकी  कविताएं जोड़कर  इसे समृद्ध करने में सहयोग कर सकते हैं।
प्रस्तुत है देवरिया की कविता की तीसरी कड़ी--

              तीन कवयित्रियाँ 
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       कवयित्री : कीर्ति त्रिपाठी
    
    कविता : 'हम भारत  की नारी हैं'
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 हम भारत  की नारी है
शुभदा ,सुखदा ,वरदानी है
हम अपाला ,गार्गी  , गंगा है
हम विजयी विश्व  तिरंगा हैं
हम गंगा की निर्मल  धारा हैं
सागर ने चरण पखारा है।।

हम, सती शांभवी सीता हैं
हम रामायण और गीता हैं
हम सप्तम -सुर की रागिनी हैं
हम अचल ,अडिग विंध्यवासिनी है
हम ही सूरज की  किरणों में
हम  ही चन्द्रमा  की  चांदनी में
हम काली कि जिन्हवा में भी
हम शिव का तान्डव नृत्यकला।।

हम राणा की मर्यादा  हैं
रघुवर- वाणी की छाया हैं
हम  पृथ्वीराज  के वाणो में
हम काल के कुटिल करालों में 
मीरा की भक्ति  भावना हैं
हम ही बुद्धत्व  साधना हैं।।

इसलिए अभी सब सुनो अभी
नारी सम्मान  करो   सभी
शिव भी शव है  शक्ति के बिना
तब तुम क्या हो कुछ ध्यान  करो 
 उस नारी का सम्मान करो ।।
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    कवयित्री : अंजली  अरोड़ा 'खुशबू'
          
               कविता :  गज़ल
      
क्यों अपने मज़हब में ही बँट कर रह गए हैं लोग,
क्योंअपने लोगों तक सिमट कर रह गए हैं लोग।।

कौन  किसका ज़माने में सभी मतलबके साथी हैं,
बिनामतलबतोअपनोंसे ही कटकर रहगए हैंलोग।

किसी की दुनिया उजड़े तो भलेउजड़े नहीपरवाह,
यहाँ तो स्वार्थ सेअपने लिपट कर रहगए हैंलोग।।

चलो चलकर समझते हैं कहाँ  किसको ज़रूरतहै,
ये जुमला भी भुला सबसे निपटकर रहगएहैंलोग।

कहाँ सेआएगी यारों ,थी अपनेपन की जो ख़ुशबू,
यहाँ मन्दिरओ मस्ज़िदमें ही बँटकर रहगएहैंलोग।
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             कवयित्री :  सीमा नयन                                                          
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                    गज़ल

हो गई हैरान हूं इस जिंदगी को देखकर
दोस्ती को देखकर इस दुश्मनी को देखकर।।

आ गए वो अंजुमन में साथ लेकर रौनकें 
हो गया मालूम सबको रौशनी को देखकर।।

रोज़ होते वो ख़फ़ा अबके मनाया भी नहीं
दिल भरा इस बार उनकी बेरुख़ी को देखकर।।

इक फ़कत मैं ही नहीं मद्दा यहां पर जानिए
शह्र पूरा है फ़िदा दिलकश परी को देखकर।।

अब किताबें जिंदगी में हैं बचे सफ़हात कुछ
मौत ठहरी  कब भला किस आदमी को देखकर।।

जीतने का हो जुनूं तो प्यास को कुछ यूं बढ़ा
ख़ुद समंदर पास आए तिश्नगी को देखकर।।

अब सताने में नयन आने लगा उनको मज़ा
दिल परीशां हो गया इस दिल्लगी को देखकर।।

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  चयन और प्रस्तुति----

        इन्द्र कुमार दीक्षित,देवरिया।

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